Chandil: सोमवार को आदिवासी समुदाय के लोग दलमा के जंगलों में प्रवेश कर विशु शिकार में शामिल होकर अपने धार्मिक परम्परा का निर्वहन किया। इस दौरान वे अपने परम्परा के तहत रीति रिवाज से पूजा पाठ किया। तत्पश्चात वे सभी सेंदरा के लिए समूह बनाकर जंगली जानवरों की खोज में निकल पड़े। हालांकि इस दौरान वन विभाग के अधिकारी भी पूरे मुस्तैदी के साथ दलमा के विभिन्न जंगलों में गश्ती करते दिखे।
ज्ञात हो कि पिछले कई दिनों से दलमा सीसीएफ एसआर नॉटेश,आरसीसीएफ स्मिता पंकज,डीएफओ सबा आलम अंसारी, रेंजर अपर्णा चंद्रा और दिनेश चंद्रा, शशिप्रकाश रंजन,वन्य प्राणियों की सुरक्षा हेतु जगह जगह दलमा इको समिति के अध्यक्ष सहित सदस्यों के संग बैठक कर जागरूकता अभियान चलाया जिसके फलस्वरूप इस वर्ष विशु शिकार में अन्य वर्ष की तुलना काफी कम शिकारी दलमा पहुंचे। हालांकि गश्ती के दौरान प्रशासन को एक जाल जंगल के भीतर मिला जिससे यह अंदेशा जताया जा रहा है कि यह शिकारी (सेंदरा वीर) द्वारा वन्य प्राणी को फांसने के लिए लगाया गया था। समय रहते जाल को जब्त करने से निश्चित तौर पर वन्य प्राणी शिकारियों के चंगुल में फंसने से बच गया
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विभाग के पूर्वी टीम के द्वारा फांस जब्त |
वन विभाग का अनुभव जागरूकता का प्रभाव
वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर वन विभाग की टीम पूरी मुस्तैदी की साथ तैनात देखा गया ।
विशु शिकार के दौरान आरसीसीएफ स्मिता पंकज मीडिया से मुखातिब होते हुए बताया कि यह विभाग के लिए सुखद अनुभव रहा की अब बहुत हद तक आदिवासियों के बीच जागरूकता काफी काम आई और समय पर वारिश तथा बाघ का प्रभाब के कारण भी है कि इस बार दलमा में शिकार न के बराबर किया गया।
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आरसीसीएफ स्मिता पंकज पत्रकारों से मुखातिब होते हुए |
वहीं उन्होंने बताया कि विशु शिकार के दौरान वन्य प्राणियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बीते 4 दिनों से ही भारी संख्या में वन रक्षक की टीम को तैनात कर दिया गया था वहीं 17 चेक नाका बनाकर अधिकारियों की तैनाती भी की गई थी।
आदिवासियों का दावा सेंदरा वीरों का उद्देश्य
वही दलमा के जंगल में सेंदरा बीरो ने बताया है की सेंदरा जंगली जानवरों को शिकार नही करते हैं। जड़ी बूटियों की खोज लिए जंगल जाते है। जहां तक तीर धनुष हतियार की बात है वो जीव जंतुओं की शिकार के लिए नहीं,खुदकी रक्षा के लिए लाते हैं।