चांडिल :सावन के पवित्र महीने में आस्था की एक मिसाल देखने को मिली है। पहली बार दलमा बाबा के दरबार में एक श्रद्धालु दंडी यात्रा पर निकले हैं। अब तक जहां श्रद्धालु कार या मोटरसाइकिल से दर्शन करने पहुंचते थे, वहीं इस बार एक भक्त घने जंगल, कीचड़ और अंधेरे रास्तों से होकर पैदल निकल पड़े हैं।पश्चिम बंगाल के बराबाजार निवासी श्यामा पदो सेन, अपने मित्र के साथ जयदा नदी से जल भरकर, दलमा के सहरबेरा मुख्य द्वार से लगभग 22 किलोमीटर लंबी दंडी यात्रा पर निकले हैं। रास्ता बेहद कठिन और जोखिमभरा है, फिर भी दोनों भक्त बूढ़ा बाबा के दर्शन की अटूट श्रद्धा के साथ यात्रा पर हैं।कठिन रास्ता, पर श्रद्धा अडिग इस यात्रा में उन्हें घना जंगल कीचड़ भरे पगडंडी अंधेरे और जानवरों के भयजैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बावजूद इसके श्रद्धालु पूरे समर्पण के साथ यात्रा कर रहे हैं।अब तक दलमा बाबा के दरबार तक जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए वाहन ही एकमात्र विकल्प माना जाता रहा है। लेकिन इस बार दंडी यात्रा का यह प्रयास बताता है कि श्रद्धा हर कठिनाई को पार कर सकती है।
अब सवाल — क्या इस मार्ग पर सुविधाएं होनी चाहिए?
इस दंडी बॉम यात्रा के बाद बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या दलमा जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए कुछ बुनियादी सुविधाएं दी जानी चाहिए?जैसे रात्रि के लिए प्रकाश व्यवस्था ,विश्राम स्थलों,प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा,सुरक्षा के लिए वन विभाग की गश्ती
आखिर इसकी जिम्मेदारी किसकी?
अगर इस धार्मिक स्थल तक लोग पैदल भी निकल रहे हैं, तो यह धार्मिक पर्यटन और स्थानीय विकास के लिहाज से भी अहम हो जाता है। लेकिन सवाल है किया वन विभाग इस पर योजना बनाएगा?या फिर कोई स्थानीय संस्था/समिति इसका बीड़ा उठाएगी?श्रद्धालुओं की इस तरह की पहल प्रशासन और समाज दोनों से सक्रिय समर्थन की अपेक्षा रखती है।
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